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Indian Penal Code 1860 - भारतीय दण्ड संहिता


Indian Penal Code 1860 - भारतीय दण्ड संहिता
The Indian Penal Code of 1860, sub-divided into twenty three chapters, comprises five hundred and eleven sections. The Code starts with an introduction, provides explanations and exceptions used in it, and covers a wide range of offences. The Outline is presented in the following table:[7]
INDIAN PENAL CODE, 1860 (Sections 1 to 511)
Chapter
Sections covered
 Classification of offences
Chapter I
Sections 1 to 5
Introduction
Sections 6 to 52
General Explanations
Chapter III
Sections 53 to 75
of Punishments
Chapter IV
Sections 76 to 106
General Exceptions
of the Right of Private Defence (Sections 96 to 106)
Chapter V
Sections 107 to 120
Of Abetment
Sections 120A to 120B
Criminal Conspiracy
Chapter VI
Sections 121 to 130
Of Offences against the State
Chapter VII
Sections 131 to 140
Of Offences relating to the Army, Navy and Air Force
Chapter VIII
Sections 141 to 160
Of Offences against the Public Tranquillity
Chapter IX
Sections 161 to 171
Of Offences by or relating to Public Servants
Chapter IXA
Sections 171A to 171I
Of Offences Relating to Elections
Chapter X
Sections 172 to 190
Of Contempts of Lawful Authority of Public Servants
Chapter XI
Sections 191 to 229
Of False Evidence and Offences against Public Justice
Chapter XII
Sections 230 to 263
Of Offences relating to coin and Government Stamps
Chapter XIII
Sections 264 to 267
Of Offences relating to Weight and Measures
Chapter XIV
Sections 268 to 294
Of Offences affecting the Public Health, Safety, Convenience, Decency and Morals.
Chapter XV
Sections 295 to 298
Of Offences relating to Religion
Chapter XVI
Sections 299 to 377
Of Offences affecting the Human Body.
·         Of Offences Affecting Life including murder, culpable homicide (Sections 299 to 311)
·         Of the Causing of Miscarriage, of Injuries to Unborn Children, of the Exposure of Infants, and of the Concealment of Births (Sections 312 to 318)
·         Of Hurt (Sections 319 to 338)
·         Of Wrongful Restraint and Wrongful Confinement (Sections 339 to 348)
·         Of Criminal Force and Assault (Sections 349 to 358)
·         Of Kidnapping, Abduction, Slavery and Forced Labour (Sections 359 to 374)
·         Sexual Offences including rape (Sections 375 to 376)
·         Of Unnatural Offences (Section 377)
Chapter XVII
Sections 378 to 462
Of Offences Against Property
·         Of Theft (Sections 378 to 382)
·         Of Extortion (Sections 383 to 389)
·         Of Robbery and Dacoity (Sections 390 to 402)
·         Of Criminal Misappropriation of Property (Sections 403 to 404)
·         Of Criminal Breach of Trust (Sections 405 to 409)
·         Of the Receiving of Stolen Property (Sections 410 to 414)
·         Of Cheating (Section 415 to 420)
·         Of Fraudulent Deeds and Disposition of Property (Sections 421 to 424)
·         Of Mischief (Sections 425 to 440)
·         Of Criminal Trespass (Sections 441 to 462)
Chapter XVIII
Section 463 to 489 -E
Offences relating to Documents and Property Marks
·         Offences relating to Documents (Section 463 to 477-A)
·         Offences relating to Property and Other Marks (Sections 478 to 489)
·         Offences relating to Currency Notes and Bank Notes (Sections 489A to 489E)
Chapter XIX
Sections 490 to 492
Of the Criminal Breach of Contracts of Service
Sections 493 to 498
Of Offences Relating to Marriage
Sections 498A
Of Cruelty by Husband or Relatives of Husband
Chapter XXI
Sections 499 to 502
Chapter XXII
Sections 503 to 510
Of Criminal intimidation, Insult and Annoyance
Chapter XXIII
Section 511
Of Attempts to Commit Offences
भारतीय दण्ड संहिता (Indian Penal Code, IPC) भारत के अन्दर (जम्मू एवं काश्मीर को छोडकर) भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा व दण्ड का प्राविधान करती है। किन्तु यह संहिता भारत की सेना पर लागू नहीं होती। जम्मू एवं कश्मीर में इसके स्थान पर रणबीर दण्ड संहिता (RPC) लागू होती है।
भारतीय दण्ड संहिता ब्रिटिश काल में सन् १८६२ में लागू हुई। इसके बाद इसमे समय-समय पर संशोधन होते रहे (विशेषकर भारत के स्वतन्त्र होने के बाद)। पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी भारतीय दण्ड संहिता को ही लागू किया। लगभग इसी रूप में यह विधान तत्कालीन अन्य ब्रिटिश उपनिवेशों (बर्मा, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, ब्रुनेई आदि) में भी लागू की गयी थी।
अध्यायधारा १७०,३९५,४३९
नाम धाराएं
अध्याय १
उद्देशिका
·         धारा १ संहिता का नाम और उसके प्रर्वतन का विस्तार
·         धारा २ भारत के भीतर किए गये अपराधों का दण्ड
·         धारा ३ भारत से परे किए गये किन्तु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अपराधों का दण्ड
·         धारा ४ राज्य-क्षेत्रातीत अपराधों पर संहिता का विस्तार
·         धारा ५ कुछ विधियों पर इस आििनधयम द्वारा प्रभाव न डाला जाना
अध्याय २
साधारण स्पष्टीकरण
·         धारा ६ संहिता में की परिभाषाओं का अपवादों के अध्यधीन समझा जाना
·         धारा ७ एक बार स्पष्टीकृत पद का भाव
·         धारा ८ लिंग
·         धारा ९ वचन
·         धारा १० पुरूष, स्त्री
·         धारा ११ व्यक्ति
·         धारा १२ लोक
·         धारा १३ निरसित
·         धारा १४ सरकार का सेवक
·         धारा १५ निरसित
·         धारा १६ निरसित
·         धारा १७ सरकार
·         धारा १८ भारत
·         धारा १९ न्यायाधीश
·         धारा २० न्यायालय
·         धारा २१ लोक सेवक
·         धारा २२ जंगम सम्पत्ति
·         धारा २३ सदोष अभिलाभ
·         सदोष अभिलाभ
·         सदोष हानि
·         सदोष अभिलाभ प्राप्त करना/सदोष हानि उठाना
·         धारा २४ बेईमानी से
·         धारा २५ कपटपूर्वक
·         धारा २६ विश्वास करने का कारण
·         धारा २७ पत्नी, लिपिक या सेवक के कब्जे में सम्पत्ति
·         धारा २८ कूटकरण
·         धारा २९ दस्तावेज
·         धारा २९ क इलेक्ट्रानिक अभिलेख
·         धारा ३० मूल्यवान प्रतिभूति
·         धारा ३१ विल
·         धारा ३२ कार्यों का निर्देश करने वाले शब्दों के अन्तर्गत अवैध लोप आता है
·         धारा ३३ कार्य, लोप
·         धारा ३४ सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किये गये कार्य
·         धारा ३५ जब कि ऐसा कार्य इस कारण अपराधित है कि वह अपराध्कि ज्ञान या
·         आशय से किया गया है
·         धारा ३६ अंशत: कार्य द्वारा और अंशत: लोप द्वारा कारित परिणाम
·         धारा ३७ किसी अपराध को गठित करने वाले कई कार्यों में से किसी एक
·         को करके सहयोग करना
·         धारा ३८ अपराधिक कार्य में संपृक्त व्यक्ति विभिन्न अपराधों के दोषी हो सकेंगे
·         धारा ३९ स्वेच्छया
·         धारा ४० अपराध
·         धारा ४१ विशेष विधि
·         धारा ४२ स्थानीय विधि
·         धारा ४३ अवैध, करने के लिये वैध रूप से आबद्ध
·         धारा ४४ क्षति
·         धारा ४५ जीवन
·         धारा ४६ मृत्यु
·         धारा ४७ जीव जन्तु
·         धारा ४८ जलयान
·         धारा ४९ वर्ष, मास
·         धारा ५० धारा
·         धारा ५१ शपथ
·         धारा ५२ सद्भावनापूर्वक
·         धारा ५२ क संश्रय
अध्याय ३
दण्डों के विषय में
·         धारा ५३ दण्ड
·         धारा ५३ क निर्वसन के प्रति निर्देश का अर्थ लगाना
·         धारा ५४ लघु दण्डादेश का लघुकरण
·         धारा ५५ आजीवन कारावास के दण्डादेश का लघुकरण
·         धारा ५५ क समुचित सरकार की परिभाषा
·         धारा ५६ निरसित
·         धारा ५७ दण्डावधियों की भिन्ने
·         धारा ५८ निरसित
·         धारा ५९ निरसित
·         धारा ६० दण्डादिष्ट कारावास के कतिपय मामलों में संपूर्ण कारावास या उसका कोई भाग कठिन या सादा हो सकेगा
·         धारा ६१ निरसित
·         धारा ६२ निरसित
·         धारा ६३ जुर्माने की रकम
·         धारा ६४ जुर्माना न देने पर कारावास का दण्डादेश
·         धारा ६५ जबकि कारावास और जुर्माना दोनों आदिष्ट किये जा सकते हैं, तब जुर्माना न देने पर कारावास, जबकि अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय हो
·         धारा ६६ जुर्माना न देने पर किस भंति का कारावास दिया जाय
·         धारा ६७ जुर्माना न देने पर कारावास, जबकि अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय हो
·         धारा ६८ जुर्माना देने पर कारावास का पर्यवसान हो जाना
·         धारा ६९ जुर्माने के आनुपातिक भाग के दे दिये जाने की दशा में कारावास का पर्यवसान
·         धारा ७० जुर्माने का छ: वर्ष के भीतर या कारावास के दौरान में उदग्रहणीय होना
·         धारा ७१ कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिये दण्ड की अवधि
·         धारा ७२ कई अपराधों में से एक के दोषी व्यक्ति के लिये दण्ड जबकि निर्णय में यह कथित है कि यह संदेह है कि वह किस अपराध का दोषी है
·         धारा ७३ एकांत परिरोध
·         धारा ७४ एकांत परिरोध की अवधि
·         धारा ७५ पूर्व दोषसिदि्ध के पश्च्यात अध्याय १२ या अध्याय १७ के अधीन कतिपय अपराधें के लिये वर्धित दण्ड
अध्याय ४
साधारण अपवाद
·         धारा ७६ विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूल के कारण अपने आप को विधि द्वारा आबद्ध होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य
·         धारा ७७ न्यायिकत: कार्य करने हेतु न्यायाधीश का कार्य
·         धारा ७८ न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में किया गया कार्य
·         धारा ७९ विधि द्वारा न्यायानुमत या तथ्य की भूल से अपने को विधि द्वारा न्यायानुमत होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य
·         धारा ८० विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना
·         धारा ८१ कार्य जिससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, किन्तु जो आपराधिक आशय के बिना और अन्य अपहानि के निवारण के लिये किया गया है
·         धारा ८२ सात वर्ष से कम आयु के शिशु का कार्य
·         धारा ८३ सात वर्ष से उपर किन्तु बारह वर्ष से कम आयु अपरिपक्व समझ के शिशु का कार्य
·         धारा ८४ विकृतिचित्त व्यक्ति का कार्य
·         धारा ८५ ऐसे व्यक्ति का कार्य जो अपनी इच्छा के विरूद्ध मत्तता में होने के कारण निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ है
·         धारा ८६ किसी व्यक्ति द्वारा, जो मत्तता में है, किया गया अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान का होना अपेक्षित है
·         धारा ८७ सम्मति से किया गया कार्य जिसमें मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का आशय हो और न उसकी सम्भव्यता का ज्ञान हो
·         धारा ८८ किसी व्यक्ति के फायदे के लिये सम्मति से सदभवनापूर्वक किया गया कार्य जिससे मृत्यु कारित करने का आशय नहीं है धारा ८९ संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिये सदभवनापूर्वक किया गया कार्य
·         धारा ९० सम्मति
·         उन्मत्त व्यक्ति की सम्मति
·         शिशु की सम्मति
·         धारा ९१ एसे कार्यों का अपवर्णन जो कारित अपहानि के बिना भी स्वत: अपराध है
·         धारा ९२ सम्मति के बिना किसी ब्यक्ति के फायदे के लिये सदभावना पूर्वक किया गया कार्य
·         धारा ९३ सदभावनापूर्वक दी गयी संसूचना
·         धारा ९४ वह कार्य जिसको करने के लिये कोई ब्यक्ति धमकियों द्धारा विवश किया गया है
·         धारा ९५ तुच्छ अपहानि कारित करने वाला कार्य
निजी प्रतिरक्षा के अधिकार के विषय में
·         धारा९६ निजी प्रतिरक्षा में दी गयी बातें
·         धारा९७ शरीर तथा सम्पत्ति पर निजी प्रतिरक्षा का अधिकार
·         धारा९८ ऐसे ब्यक्ति का कार्य के विरूद्ध निजी प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकृतख्त्ति आदि हो
·         धारा९९ कार्य, जिनके विरूद्ध निजी प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है इस अधिकार के प्रयोग का विस्तार
·         धारा१०० शरीर की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने पर कब होता है
·         धारा१०१ कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है
·         धारा१०२ शरीर की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बने रहना
·         धारा१०३ कब सम्पत्ति की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने तक का होता है
·         धारा१०४ ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता है
·         धारा१०५ सम्पत्ति की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बने रहना
·         धारा१०६ घातक हमले के विरूद्ध निजी प्रतिरक्षा के अधिकार जबकि निर्दोश व्यक्ति को अपहानि होने की जोखिम है
अध्याय ५
दुष्प्रेरण के विषय में
·         धारा१०७ किसी बात का दुष्प्रेरण
·         धारा१०८ दुष्प्रेरक
·         धारा१०८ क भारत से बाहर के अपराधों का भारत में दुष्प्रेरण
·         धारा१०९ दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित कार्य उसके परिणामस्वरूप किया जाए और जहां तक कि उसके दण्ड के लिये कोई अभिव्यक्त उपबंध नही है
·         धारा११० दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न आशय से कार्य करता है
·         धारा१११ दुष्प्रेरक का दायित्व जब एक कार्य का दुष्प्रेरण किया गया है और उससे भिन्न कार्य किया गया है
·         धारा११२ दुष्प्रेरक कब दुष्प्रेरित कार्य के लिये और किये गये कार्य के लिए आकलित दण्ड से दण्डनीय है
·         धारा११३ दुष्प्रेरित कार्य से कारित उस प्रभाव के लिए दुष्प्रेरक का दायित्व जो दुष्प्रेरक दवारा आशयित से भिन्न हो
·         धारा११४ अपराध किए जाते समय दुष्प्रेरक की उपस्थिति
·         धारा११५ मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण यदि अपराध नही किया जाता यदि अपहानि करने वाला कार्य परिणामस्वरूप किया जाता है
·         धारा११६ कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण अदि अपराध न किया जाए यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक सेवक है, जिसका कर्तव्य अपराध निवारित करना हो
·         धारा११७ लोक साधारण दवारा या दस से अधिक व्यक्तियों दवारा अपराध किये जाने का दुष्प्रेरण
·         धारा११८ मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना यदि अपराध कर दिया जाए - यदि अपराध नहीं किया जाए
·         धारा११९ किसी ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना का लोक सेवक दवारा छिपाया जाना, जिसका निवारण करना उसका कर्तव्य है
·         यदि अपराध कर दिया जाय
·         यदि अपराध मृत्यु, आदि से दण्डनीय है
·         यदि अपराध नही किया जाय
·         धारा१२० कारावास से दण्डनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना
·         यदि अपराध कर दिया जाए - यदि अपराध नही किया जाए
अध्याय ५ क
आपराधिक षडयंत्र
·         धारा१२० क आपराधिक षडयंत्र की परिभाषा
·         धारा१२० ख आपराधिक षडयंत्र का दण्ड
अध्याय ६
राज्य के विरूद्ध अपराधें के विषय में
·         धारा१२१ भारत सरकार के विरूद्ध युद्ध करना या युद्ध करने का प्रयत्न करना या युद्ध करने का दुष्प्रेरण करना
·         धारा१२१ क धारा १२१ दवारा दण्डनीय अपराधों को करने का षडयंत्र
·         धारा१२२ भारत सरकार के विरूद्ध युद्ध करने के आशय से आयुध आदि संग्रह करना
·         धारा१२३ युद्ध करने की परिकल्पना को सुनकर बनाने के आशय से छुपाना
·         धारा १२४ किसी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग करने के लिए विवश करने या उसका प्रयोग अवरोपित करने के आशय से राट्रपति, राज्यपाल आदि पर हमला करना
·         धारा१२४ क राजद्रोह
·         धारा१२५ भारत सरकार से मैत्री सम्बंध रखने वाली किसी एशियाई शक्ति के विरूद्ध युद्ध करना
·         धारा१२६ भारत सरकार के साथ शान्ति का संबंध रखने वाली शक्ति के राज्य क्षेत्र में लूटपाट करना
·         धारा१२७ धारा १२५ व १२६ में वर्णित युद्ध या लूटपाट दवारा ली गयी सम्पत्ति प्राप्त करना
·         धारा१२८ लोक सेवक का स्व ईच्छा राजकैदी या युद्धकैदी को निकल भागने देना
·         धारा१२९ उपेक्षा से लोक सेवक का ऐसे कैदी का निकल भागना सहन करना
·         धारा१३० ऐसे कैदी के निकल भागने में सहायता देना, उसे छुडाना या संश्रय देना
अध्याय ७
सेना, नौसेना और वायुसेना से सम्बन्धित अपराधें के विषय में
·         धारा१३१ विद्रोह का दुष्प्रेरण का किसी सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक को कर्तव्य से विचलित करने का प्रयत्न करना

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